Check in this page new Updates of BhaktiDarpan
Bhakti Darpan: Updates
What's New in BhaktiDarpan?
Subscribe Subscribe for email Updates
विद्येश्वरसंहिता: सत्रहवाँ अध्याय: षड्लिग्ङ्स्वरुप प्रणव तथा उसके सुक्ष्म-रुप (ॐकार) और स्थुल-रुप (पञ्चाक्षर-मन्त्र) का विवेचन : पृष्ठ 10
पुनःकारणरुद्रस्य लोकाष्टाविंशका मताः॥९१
पुनश्च कारणेशस्य षट्पञ्चाशत्तदूर्ध्वगाः॥९१॥
Posted in श्रीशिवमहापुराण at Mon, 19 Aug 2019 13:54:02 +0530 by भक्तिदर्पण
उनसे भी ऊपर फिर कारणरुपी रुद्र के अट्ठाईस लोकों की स्थिति मानी गयी है। फिर उनसे भी ऊपर कारणेश शिव के छप्पन लोक विद्यमान है।
तृतीय स्कंध: सत्रहवाँ अध्याय: हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष का जन्म तथा हिरण्याक्ष की दिग्विजय : पृष्ठ 2
खराश्च कर्कशैः क्षत्तः खुरैर्घ्नन्तो धरातलम्।
खार्काररभसा मत्ताः पर्यधावन्वरुथशः॥11॥
Posted in श्रीमद्भागवतमाहापुराण at 3 Days ago by भक्तिदर्पणखार्काररभसा मत्ताः पर्यधावन्वरुथशः॥11॥
विदुर जी! झुंड-के-झुंड गधे अपने कठोर खुरों से पृथ्वी खोदते और रेंकने का शब्द करते मतवाले होकर इधर-उधर दौड़ने लगे॥11॥
Shri DurgaSaptsati
श्रीदुर्गासपतशती हिंन्दु धर्म का सर्वमान्य ग्रंथ है। इसमे भगवती की कृपा के सुन्दर इतिहास के साथ ही बड़े-बड़े गूढ साधन-रहस्य भरे हैं। कर्म, भक्ति और ज्ञान की त्रिविध मन्दाकिनी बहानेवाला यह ग्रंथ भक्तों के लिये वांछाकल्पतरु है सकाम भक्त इसके सेवन से मनोऽभिलाषित दुर्लभतम वस्तु या स्थिती को सहज ही प्राप्त कर लेते है और निष्काम भक्त परम दुर्लभ मोक्ष को पाकर कृतार्थ होते हैं।
Posted in Shri DurgaSaptsatiFACEBOOK COMMENTES